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Thursday 11 May 2017

नदियों सी गहरी स्त्रियां

नदियों सी गहरी स्त्रियां

स्त्री संवाहक है संस्कृति की,
ये साहिल नहीं नदियों की।
ये जलधारा है निर्मल सी,
जो बहती चलती है निस्वार्थ।
साहिल के दोनों छोरों को,
साथ-साथ सहेजे हुए।
कभी आवेग हिचकोले लेता,
फिर भी बहती निश्छल सी सतह पर।
संस्कृति को सहेजकर,
सृजित करती नई पीढी में संस्कारांे को।
जैसे कई नदियां समाहित हो जातीं,
सागर के गहरे से जल में।
स्त्री यूं घुल-मिल जाती,
संस्कृति और संस्कारों के मेल में।
जैसे नदियां मिल जातीं,
सागर के अनंत प्रेम में।
स्त्री खुद को समर्पित करती,
संस्कारों व संस्कृति के संवहन में।
दोनों ही प्रेम और त्याग का पर्याय हैं,
स्त्री मध्यस्थ होती दो संस्कृतियों की,
नदियां मध्यस्थता करती साहिलों की।



कमला शर्मा

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