नदी तुम्हें ठहरना होगा
इस धरा को दरकने से बचाने के लिए
तुम्हें प्रवाहित होना होगा
संस्कृति के संचरण के लिए।
तुम्हें अपनी नमी से
बचाना होगा वैचारिक हरापन
और सिंचित करनी होगी
भावनाओं की जडें़
जिनसे पल्लवित होगी
नवकोपलें अहसासों व अपनेपन की।
नदी! तुम्हारा यूं, दोनों छोरों को थामे हुए चलना
जोडे़गा रिश्तों को पीढ़ी दर पीढ़ी।
तुम्हारी ये निरन्तरता प्रेरित करेगी
कठिन समय में भी, तरंगित व उर्जित होने के लिए
हां, नदी! तुम्हें ठहरना होगा
उम्मीदें के सृजन को बचाने के लिए।
नदी! तुम्हारा यूं, दोनों छोरों को थामे हुए चलना
ReplyDeleteजोडे़गा रिश्तों को पीढ़ी दर पीढ़ी।
तुम्हारी ये निरन्तरता प्रेरित करेगी .... अनुपम सृजन
आभार सीमा जी...यूं ही नेह बनाए रखियेगा।
Deleteनदी पर बहुत गहरी कविता। बधाई आपको
ReplyDeleteआभार
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