अंतर्मन की आवाज
हम सभी अंतर्मन के द्वंद से अक्सर संवाद करते हैं, इस वार्तालाप में दिमाग अपनी बुद्धिमत्ता के कारण हमारे अंतर्मन की सरल, सौम्य, निश्छल, नि:स्वार्थ और कोमल भावनाओं पर हावी होने लगता हैं। हमारा अंतर्मन हमेशा सही निर्णय लेता है, लेकिन हममें से बहुत कम लोग होते हैं जो अंतर्मन की आवाज सुन पाते हैं, क्योंकि कभी जिम्मेदारी, कभी आर्थिक स्थिति, सामाजिक परिवेश, पारिवारिक वातावरण ये सब हमारे अंतर्मन की आवाज को मन में ही दफन कर देते हैं। हमने देखा है हमारा एक निर्णय , हमारे जीवन में अहम भूमिका निभाता है।हम इस अंतर्मन के निर्णय को अक्सर स्वार्थ व बाहरी परिवेश के अधीन होकर मन के किसी अंधेरे कोने में छिपा लेते है, लेकिन मन के अंधेरे कोने में छिपे इस निर्णय से हम अक्सर वार्तालाप करते है और कहीं न कहीं उस निर्णय को न मानने पर पछतावा भी -----।हम अक्सर अपने बच्चों के बेहतर भविष्य को लेकर इतने चिंतित हो जाते हैं कि उस बेहतर भविष्य के निर्माण करने के लिए उनको जिंदगी की तेज रफ्तार में एक धावक की तरह दौड़ में शामिल कर देते है, इस भागमभाग में हम उनकी रुचि, खुशी सब कुछ भूलकर कहीं पीछे छोड़ आते है----------------------------। हम सोचते है हम माँ- बाप है, हमसे बेहतर बच्चों के बारे में और कौन सोच सकता है -------------------? बात तो सही है, माँ- बाप से बेहतर कोई भी नहीं, लेकिन इस दौड़ में हम अपने बच्चों की कोमल भावनाओं को रौंद देते है। उस बेहतरी के जुनून में इस ओर ध्यान ही नहीं जाता कि बच्चा क्या चाहता है -----------------? एक मासूम सा बच्चा हमारी खुशी के लिए वो सब करने लगता है जो हम चाहते है, हमारे पसंदीदा विषय चुन लेता है, और उसी को अपना कैरियर बनाने की कोशिश भी करता है लेकिन कभी - कभी ये अंतर्द्वंद्व मस्तिष्क पर हावी होने लगता है जो गलत रास्ते आत्महत्या जैसी घटनाओं के लिए प्रेरित करता है। क्या ये सही है ----? हमें इस अंतर्मन की आवाज को सुनकर अपने को और अपने बच्चों को इस अंतर्द्वंद्व के चक्रव्यूह से बाहर निकालना होगा, तभी हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर पायेंगे, क्योंकि दबाव और अरुचिपूर्ण कार्य कभी भी मानसिक संतुष्टि नहीं देता, हमारा दबाव बच्चों को उच्च सामाजिक स्तर, मजबूत आर्थिक स्थिति दे सकता है, लेकिन आत्म संतुष्टि तो रुचिकर कार्य से ही मिल सकती है, ये वो खुशी है जिसे हम उनके चेहरों पर महसूस कर सकते हैं। इस रुचि व अरुचि के बीच के द्वंद्व को समाप्त करके, अपने बच्चों के सपनों को आकार देकर, शायद इन सपनों को हमारे सोच से भी बेहतर आकार मिल जाए।
हम सभी अंतर्मन के द्वंद से अक्सर संवाद करते हैं, इस वार्तालाप में दिमाग अपनी बुद्धिमत्ता के कारण हमारे अंतर्मन की सरल, सौम्य, निश्छल, नि:स्वार्थ और कोमल भावनाओं पर हावी होने लगता हैं। हमारा अंतर्मन हमेशा सही निर्णय लेता है, लेकिन हममें से बहुत कम लोग होते हैं जो अंतर्मन की आवाज सुन पाते हैं, क्योंकि कभी जिम्मेदारी, कभी आर्थिक स्थिति, सामाजिक परिवेश, पारिवारिक वातावरण ये सब हमारे अंतर्मन की आवाज को मन में ही दफन कर देते हैं। हमने देखा है हमारा एक निर्णय , हमारे जीवन में अहम भूमिका निभाता है।हम इस अंतर्मन के निर्णय को अक्सर स्वार्थ व बाहरी परिवेश के अधीन होकर मन के किसी अंधेरे कोने में छिपा लेते है, लेकिन मन के अंधेरे कोने में छिपे इस निर्णय से हम अक्सर वार्तालाप करते है और कहीं न कहीं उस निर्णय को न मानने पर पछतावा भी -----।हम अक्सर अपने बच्चों के बेहतर भविष्य को लेकर इतने चिंतित हो जाते हैं कि उस बेहतर भविष्य के निर्माण करने के लिए उनको जिंदगी की तेज रफ्तार में एक धावक की तरह दौड़ में शामिल कर देते है, इस भागमभाग में हम उनकी रुचि, खुशी सब कुछ भूलकर कहीं पीछे छोड़ आते है----------------------------। हम सोचते है हम माँ- बाप है, हमसे बेहतर बच्चों के बारे में और कौन सोच सकता है -------------------? बात तो सही है, माँ- बाप से बेहतर कोई भी नहीं, लेकिन इस दौड़ में हम अपने बच्चों की कोमल भावनाओं को रौंद देते है। उस बेहतरी के जुनून में इस ओर ध्यान ही नहीं जाता कि बच्चा क्या चाहता है -----------------? एक मासूम सा बच्चा हमारी खुशी के लिए वो सब करने लगता है जो हम चाहते है, हमारे पसंदीदा विषय चुन लेता है, और उसी को अपना कैरियर बनाने की कोशिश भी करता है लेकिन कभी - कभी ये अंतर्द्वंद्व मस्तिष्क पर हावी होने लगता है जो गलत रास्ते आत्महत्या जैसी घटनाओं के लिए प्रेरित करता है। क्या ये सही है ----? हमें इस अंतर्मन की आवाज को सुनकर अपने को और अपने बच्चों को इस अंतर्द्वंद्व के चक्रव्यूह से बाहर निकालना होगा, तभी हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर पायेंगे, क्योंकि दबाव और अरुचिपूर्ण कार्य कभी भी मानसिक संतुष्टि नहीं देता, हमारा दबाव बच्चों को उच्च सामाजिक स्तर, मजबूत आर्थिक स्थिति दे सकता है, लेकिन आत्म संतुष्टि तो रुचिकर कार्य से ही मिल सकती है, ये वो खुशी है जिसे हम उनके चेहरों पर महसूस कर सकते हैं। इस रुचि व अरुचि के बीच के द्वंद्व को समाप्त करके, अपने बच्चों के सपनों को आकार देकर, शायद इन सपनों को हमारे सोच से भी बेहतर आकार मिल जाए।
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