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Thursday, 11 May 2017

....ये अथाह प्रेम

....ये अथाह प्रेम

मन यूं व्यथित हुआ,
इन अहसासों के मंथन में,
कहीं खो गई मन के अंतस में।
एक रिश्ते ने आज मुझे झकझोरा,
सुनकर व्यथा आंखें भर आईं।
एक पति-पत्नी का रिश्ता,
जन्म-जन्म साथ निभाने का,
लेकिन पत्नी की सांसें,
पति से पहले ही गई थीं थम,
इस विरह से पति की आंखें,
बार-बार हो रही थी नम।
इस अथाह प्रेम का,
ऐसा देख विराम!
मन विचलित हुआ और द्रवित भी...।
मन यूं सोचता रहा,
कैसे ये जन्म-जन्म का रिश्ता,
सांसें रुक जाने से सिमट सकता है?
फिर अगले ही पल सोचती,
सिर्फ शरीर अलग हुए हैं,
रिश्ता तो जन्म जन्मान्तर का ही है।
ये हमेशा भावनाओं में, अहसासों में,
हमेशा हर पल,
एक-दूसरे के साथ ही रहेंगे,
विचलित मन की इस कशमकश में,
मन में उठे थे, जो कई सवाल,
फिर अश्रुधारा के साथ,
प्रवाहित हो गए अहसासों में।
मन यूं ही व्यथित हुआ,
इन अहसासों के मंथन में।

कमला शर्मा

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