कोहरे के इस आवरण ने
जैसे धुपा लिया हो प्रकृति का
खूबसूरत सा सौन्दर्य ......
ये शबनम की बूंदे
जैसे बयां कर रही हो
प्रकृति के विरह की दास्तां
इस घुप्प अंधेरे में
जैसे बहा रही हो
प्रकृति अश्रु्र धारा
लेकिन एक भरोसा है
फिर एक नई सुबह
एक नई उम्मीद के साथ
रश्मि रथ में सवार
एक राजकुमार.....
अपने ओजस्वी तेज से
भेदते हुए इस धुंध को
बिखेर देता है चहुंओर
अपनी ओजस्वी आभा को
और इस तेज के स्पर्श से ही
निखर उठता है प्रकृति का
ये लावण्य सा यौवन
और ये धुंध सी विरह की पीड़ा
परिणीत हो जाती है.....
मिलन की मधुर
स्वर्णिम बेला में...।
कमला शर्मा
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