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Saturday 13 May 2017

मांँ...


मांँ तुझे शब्दों में कैसे व्यक्त करें,
तू अहसासों का समन्दर है।
हम इसमें बूंद भी बन जाएं तो,
इस जिंदगी में तर जाएं।
हम तुझे वर्णो व शब्दों में कैसे रचें,
तुम हमारे जीवन की वर्णमाला हो।
मांँ तूने हमें अपने नेह से सींच,
भावनाओं और अहसासों से,
हमें पल्लवित किया।
दुनिया में खूबसूरत रंगों से,
हमें परिचित करवाया,
तू वृक्ष बन त्याग करती रही,
हमें तपिश भरी धूप में भी,
अपने शीतलता के आंचल से,
ठंडी-ठंडी छांह देती रही।
इस ममत्व का तुझे,
क्या मोल हम दे पाएंगे...?
इसके ऋणी रहकर ही,
हम खुद तर जाएंगे।
मांँ तू इस धरा में,
संपूर्णता का अभिप्राय है।


कमला शर्मा 

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