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Saturday 20 May 2017

नेह के ये मधुर अहसास


खुद को लिखना चाहा
किताब के पन्नों पर...
अहसास कैसे लिखती
इन कोरे पन्नों पर
शब्द सिमट गये
जज्बातों के असर से
जिन अहसासों को महसूस किया
कैसे लिखती किताब पर
ये अमिट हैं मेरे मन के अंतस में
किताब में लिखे शब्दों का क्या
मिट सकती है स्याही शब्दों की....
फिर सहेजती गई अहसासों को
और इस नेह की खुशबू से
महकती रही मन की किताब पर
शब्दों की पहेली उलझ न जाये
वक्त हाथ से यूं ही निकल न जाये
ये सोच आंखों में ही सहेज लिए
नेह के मधुर अहसास
जब भी आंखें बंद करती
महसूस कर लेती इन लम्हों को
ये कोरे पन्ने कैसे लिख पाएंगे
इन अहसासों के समंदर को

कमला शर्मा

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