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Thursday, 11 May 2017

...ये जिंदगी का सफर

...ये जिंदगी का सफर

कुछ उड़ान जिंदगी के लिए,
कुछ जिंदगी उड़ान के लिए,
यूं ही मंजिल की ओर चलते रहे।
कुछ सफर मनचाहा सा,
कुछ अनचाहा सा,
फिर भी सफर तय करते रहे।
मंजिल की तलाश में,
रिश्तों के दायरे सिमट गए।
इन दायरों में जज्बात भी कहीं खो गए,
जिन्हें जरुरत थी हमारी,
उन्हें अकेले छोड़ आए।
अहसासों के इस पतझड़ में,
रिश्ते कितने सूख गए।
जिंदगी की इस उड़ान में,
समय हाथ से फिसलता गया,
मुटठी में भरी रेत की तरह।
हम पढ़ते ही रह गए जिंदगी की किताब,
कीमती रिश्तों के बिना, हम कोरे से रह गए।

(कमला शर्मा)

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