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Saturday, 22 April 2017

दहलीज के उस पार 


जब भी कोई लड़की मायके से ससुराल की दहलीज में पदार्पण करती है, उसके मन में सवालों की झड़ी सी लग जाती है। नये रिश्ते, नये लोग, नये रीति रिवाज, नयी जिम्मेदारियाँ न जाने मन में क्या क्या उधेड़बुन चलती है । उसके साथ साथ कुछ मन को उत्साहित करने वाले सपने शायद जो इन जिम्मेदारियों को निभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब लड़की इस पवित्र बंधन से जुड़ती है, तो वो सिर्फ एक व्यक्ति से नहीं, कई नये रिश्तों से मिलती है। इस पवित्र रिश्ते की बुनियाद सिर्फ विश्वास और भरोसे से शुरू होती है। जिन लोगों को कभी देखा नहीं, कभी मिले नहीं जिनकी आदतों से परिचित नहीं होते, उनके साथ आकर हमेशा के लिए साथ रहना, तालमेल बैठाना, सबके दिलों में जगह बनाना, ये सब आसान तो नहीं, लेकिन एक व्यक्ति जिसकी अर्धांगिनी बनकर हम इस घर में प्रवेश करते है, उस पर न जाने क्यों एक अटूट विश्वास होता है, एक भरोसा होता है जिससे हम अपनी सारी बातें सांझा करने लगते है, यहाँ पर सभी अपरिचित है किसी से कुछ पूछने में या अपनी बात बोलने में जो संकोच या डर होता है वो डर इनसे नहीं, कुछ तो खास बात है अनजान होने पर भी अपने से ज्यादा भरोसा करने लगते है। हमसफर यदि इस सफर में साथ साथ चले तो ये सफर, ये रिश्ते सब आसान हो जाते है। लेकिन कुछ समय बाद ------ जिस मायके में लड़की तितली सी चंचल , स्वच्छंद अपनी मर्जी से घर के हर कोने में घूमती थी वही मायके की दहलीज न जाने कब अपरिचित सी, अनजान सी लगने लगती है। जिस घर में बचपन बीता, जिस घर के हर एक सामान पर अपना हक जताते थे, वही सामान को लेने से पहले अब पूछने लगते है -------- घर वही, रिश्ता वही लेकिन इस नये रिश्ते के साथ हमारे कुछ अपने दायरे तय हो जाते है, उस बचपन की दहलीज के लिए -----। जिस अनजान दहलीज में पदार्पण किया था, न जाने वो कब , इन खट्टे मीठे रिश्तों के साथ अपनी सी लगने लगती है, पता ही नहीं चला। यहाँ जिम्मेदारियां बोझ नहीं फर्ज में बदल गयी। हमारी पसंद नापसंद न जाने कब इस परिवार के सदस्यों के हिसाब से ढल जाती है। इस बदलाव में भी सुकून है कोई शिकायत नहीं। इन रिश्तों में जीना अच्छा लगने लगता है और इस अनजान सी दुनिया में कब हमारी अपनी एक खूबसूरत सी दुनिया बस जाती है पता ही नहीं चलता ----। 

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