कभी-कभी बातों ही बातों में कुछ गहरी सीख मिल जाती है। आज कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। मुझे एक परिचित आंटी मिलीं।
मैंने पूछा आंटी आप कैसी हो?
वो बोली- बेटा बस जिंदगी कट रही है।
मैंने कहा क्या हुआ आंटी ....ऐसे क्यों बोल रही हो?
वो बोली- बेटा तुमने वैकल्पिक और अनिवार्य विषय पढ़े होंगे, मैंनें कहा जी आंटी।
वो बोलीं- बस मैं भी वही वैकल्पिक विषय बन कर रह गयी हूं।
मेरी समझ में कुछ नहीं आया मैं बस उन्हें देखती रही।
वो बोली बेटा अनिवार्य विषय मतलब बहुत जरूरी और वैकल्पिक मतलब सिर्फ काम चलाऊ। जब अनिवार्य चीजें मिलने में अड़चनें आती हैं तो तुमने देखा होगा वैकल्पिक का रास्ता अक्सर खुला होता है जिसे हम सिर्फ काम निकालने में इस्तेमाल करते हैं। अनिवार्य विषय हमारी जरूरत होते हैं जिसके लिए हम वैकल्पिक विषय को एक तरफ रख देते हैं...। वो बोलीं वही स्थिति मेरी भी है। ये बोलते हुए एक लम्बी सांस ली और आंटी चुप हो गयीं। कुछ देर की खामोशी के बाद वो पुनः बोली अब ये जिंदगी और रिश्ते भी कुछ इसी तर्ज पर निभाए जाते हैं...।
उनके जाने के बाद मैं सोचने लगी आंटी रिश्तों में आई औपचारिकता को कितनी आसानी से समझा गयीं.......।
कमला शर्मा