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Saturday 22 April 2017

ये कैसी दौड़ ...........

योग्यता या श्रेष्ठता का आकलन अंकों के आधार पर कैसे किया जा सकता है ?
अक्सर परीक्षाओं की शुरुआत ही अंको की प्रतिशतता को लक्ष्य बनाकर होती है। परीक्षार्थियों का केंद्र बिंदु विषय वस्तु में ज्ञान प्राप्ति न होकर, अधिक से अधिक अंक प्राप्त करने पर केन्द्रित होता है।
येन- केन प्रकारेण अंकों की अधिकता भी प्राप्त हो जाती है और श्रेष्ठता सूची में स्थान भी प्राप्त हो जाता है।क्या विषय वस्तु के ज्ञान के बिना ये श्रेष्ठता या योग्यता का आंकलन सही है .....................?
यही अंकों की श्रेष्ठता के आधार पर उसका चयन किसी कार्यक्षेत्र में भी हो जाता है लेकिन ......................
क्या वो उस कार्य को उतनी ही निष्ठा और निपुणता से कर पाएगा, जिसका उसे ज्ञान ही नहीं ...........?
ये कार्य उसके लिए सिर्फ और सिर्फ जीविकोपार्जन और द्रव्य कमाने का साधन मात्र बन जाता है।
मेरा मानना है जिसके लिए शायद वह अकेले ही जिम्मेदार नहीं, अपितु उसके साथ - साथ हमारी शिक्षा नीति और समाज भी जिम्मेदार है , क्योंकि हमारी शिक्षा नीति और समाज का नजरिया ही उसे अंकों की दौड़ में शामिल होने के लिए विवश करता है। 
हम माता -पिता भी कम जिम्मेदार नहीं है.................
परिवार का बच्चों पर इंजीनियर, डाक्टर या प्रशासनिक अधिकारी बनने का सपना थोप दिया जाता है, इससे नीचे की बात तो जैसे कोई अपराध हो।
हम जैसे बच्चों को इन सपनों को पूरा करने का संसाधन मान चुके हैं , जब तक वही बच्चा अपने रुचिकर कार्य करने के लिए सक्षम और स्वतंत्र होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है क्योंकि तब तक वो इस कार्य प्रणाली का हिस्सा बन चुका होता है।
व्यक्ति सोचने लगता है जीऊँगा एक दिन अपने सपनों के साथ, लेकिन न वो एक दिन आता है और न वो सपना पूरा होता है, फिर उसी अधूरे सपने को अपने बच्चों पर थोपने लगता है ...............और उसी एक परम्परा का हिस्सा हो जाता है।

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