मैं सहेज लेना चाहती हूं
अपने हिस्से की
धूप का एक टुकड़ा
जब भी कभी रिश्तों पर
जम जाएगी बर्फ की
ठंडी सी परत
इस धूप के टुकड़े से
पिघला लिया करूंगी
जमी हुई इस परत को
इस ऊर्जित टुकड़े से
संचारित हो उठेगी
भावनाओं की तंत्रिकाएं
और ये पिघली हुई देह
सराबोर हो जाया करेंगी
रिश्तों की धूप में
कमला शर्मा
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