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Saturday, 22 April 2017

 वो अनुशासन प्रिय चेहरा

हमारी स्मृति में आज भी हमारे गुरुजन बसे हुए है।उनकी स्मृति मात्र से ही उनका व्यक्तित्व, आदर्श, हमारी आँखों के सामने तैरने लगता है। हमारे लिए आज भी वो हमारे आदर्श हैं हमारे लिए सम्माननीय है। आज भी जब उनकी याद आती है तो हम अपने शिक्षकों के बारे में अपने बच्चों को बताने के लिए उतावले हो जाते है।जब भी हमारे शिक्षक हमें कहीं दिख जाते है तो हम उनके चरणों में झुक जाते है और हमें देखकर उनकी आँखों में खुशी झलकने लगती है।ये गुरू शिष्य का रिश्ता अविस्मरणीय होता है। हमें याद है हमारे गुरूजन हमें जहाँ कहीं भी दिख जाते थे तो हम उन्हें देखकर छिप जाते थे। आज भी मेरी स्मृति में वो दिन तरोताजा है , मुझे अब भी याद है राजकीय कन्या इण्टर कालेज में हमारी प्रधानाचार्या सुश्री आनंदी आर्या जी का अनुशासन प्रिय वो चेहरा , वो भाव। उनके नाम से ही मुझे एक वाकया याद आता है, मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती थी , मैं अपनी सहेलियों के साथ सर्कस देखने चली गयी। जिस जगह पर सर्कस लगा था वहीं हमारी प्रधानाचार्या जी भी रहती थीं इसी बात को लेकर हम सब के मन में ये डर भी था कि कहीं उनकी नजर हम पर न पड़ जाये लेकिन उस सर्कस देखने के उत्साह को रोक न पाए और नजरें बचाते हुए वहाँ से निकल गये।सर्कस के रोमांचक करतब के साथ साथ दिमाग में प्रधानाचार्या जी का डर भी सताये जा रहा था, खैर सब कुछ ठीक था हमें लगा हम बच गये किसी ने नहीं देखा।दूसरे दिन स्कूल पहुंचे, जब स्कूल में सुबह प्रार्थना समाप्त होने के बाद प्राधानाचार्या जी मंच से बोली - बच्चों कल सर्कस देखने कौन - कौन गया था बस क्या था हमारे चेहरे की तो हवाईया तो उड़ गयी और चुपचाप प्रार्थना की कतार से अलग खड़े हो गये। ऐसे न जाने कितने वाकये हैं जो याद आते हैं। हमने अपने शिक्षकों से बड़ों का सम्मान करना सीखा--। खैर, अब जब शिक्षा के नए रूप में शिक्षक और बच्चों को देखती हूँ तो मन विचलित होता है, बच्चों में इस पवित्र रिश्ते का अंकुरण सूखने लगा है, ये नहीं होना चाहिए ---। ये गहरे चिंतन का विषय है ---।

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