मन के अंतस को छूतीं
बूंदों की ये शीतल बेला
गहरे तक छू जातीं ये
बूंदों की अलबेली बेला
गहरे से मन के अंतस में
गहरी सी एक राग सुनाती
प्रकृति ये तुम जैसी सच्ची
नेह की बारिश हमें बताती
कमला शर्मा
बारिश की इन बूंदों को सहेज लेना चाहती हूँ अपनी हाथों की अंजुली में आने वाली पीढी के लिए लेकिन कितना अजीब है न !! ऐसा सब सोचना.....
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