Search This Blog

Saturday, 13 January 2018

कोहरे सी जिंदगी जिंदगी के कोहरे


कोहरे की घनी चादर
बताती है
जिंदगी कोहरे सी है और कोहरे जिंदगी से।
बेहद सतही जीवन है
इस श्वेत घुम्मकड़ का।
ये हमें पार देखने की इजाजत नहीं देता
ये हमें केवल अपने को ही
समझने का सबक देता है।
कोहरे सी जिंदगी की एक उम्र होती है
लेकिन
जिंदगी के कोहरे ताउम्र साथ चलते हैं।
कोहरे हमें सिखलाते है
कोहरे हमें उलझाते है
कोहरे हमें धुंध का मर्म समझाते हैं।
ये हमें श्वेत और निर्मल हो जाने के बीच
की आदमीयत से भी परिचित करवाते हैं।
कोहरे यदि समझाते हैं तो बेहतर हैं
लेकिन
वे समझ आते हैं तो मुश्किल हैं।

कमला शर्मा

एक टुकड़ा धूप



मैं सहेज लेना चाहती हूं
अपने हिस्से की 
धूप का एक टुकड़ा
जब भी कभी रिश्तों पर
जम जाएगी बर्फ की 
ठंडी सी परत
इस धूप के टुकड़े से
पिघला लिया करूंगी
जमी हुई इस परत को
इस ऊर्जित टुकड़े से
संचारित हो उठेगी
भावनाओं की तंत्रिकाएं
और ये पिघली हुई देह
सराबोर हो जाया करेंगी
रिश्तों की धूप में

कमला शर्मा

...एक नई सुबह



कोहरे के इस आवरण ने
जैसे धुपा लिया हो प्रकृति का
खूबसूरत सा सौन्दर्य ......
ये शबनम की बूंदे
जैसे बयां कर रही हो
प्रकृति के विरह की दास्तां
इस घुप्प अंधेरे में
जैसे बहा रही हो
प्रकृति अश्रु्र धारा
लेकिन एक भरोसा है
फिर एक नई सुबह 
एक नई उम्मीद के साथ
रश्मि रथ में सवार
एक राजकुमार.....
अपने ओजस्वी तेज से
भेदते हुए इस धुंध को
बिखेर देता है चहुंओर
अपनी ओजस्वी आभा को
और इस तेज के स्पर्श से ही
निखर उठता है प्रकृति का
ये लावण्य सा यौवन
और ये धुंध सी विरह की पीड़ा
परिणीत हो जाती है.....
मिलन की मधुर
स्वर्णिम बेला में...।

कमला शर्मा

Featured post

बारिश

बारिश की इन बूंदों को सहेज लेना चाहती हूँ अपनी हाथों की अंजुली में आने वाली पीढी के लिए लेकिन कितना अजीब है न !! ऐसा सब सोचना.....