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Tuesday, 18 July 2017

भाषा नयनों की...


आंखों की गहराई में है
सागर सी अनंतता
कई अनकहे-अनसुलझे से
सवाल-जवाब हैं
इन पलकों की ओट में।
कभी ये सागर की मौजों सी
चंचलता बयां करतीं
कभी सागर के शांत जल सी
आंखों में ठहर जाती।
कभी मन के खारेपन को
अश्क के जल में बहा देतीं
इन आंखों की गुफ्तगू में
है मन के कई राज छिपे
नजरें झुकाकर हामी भरती
तो नजरें मिलाकर भरोसा करती
और कभी नजरें चुराकर
अनकहे सवालों में उलझा देती।


कमला शर्मा 

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