जिंदगी की चादर में
जब भी सलवटें आतीं
उन्हें सलीके से समेट कर
तह की परत चढ़ाती
और तर्जुबे के तौर पर
स्मृति की अलमारी में
सहेज लेती ये सलीका।
इस चादर की हर परत में
मैंने सीखा जीने का सलीका
जो जिंदगी की सलवटों में
तर्जुबे की मखमली
चादर बनकर...
नर्म से अहसास से
मुझे सहलाती
और ये लकीरें सिमटकर
तब्दील हो जातीं ...
खुशियों की मखमली
ओढ़नी में.....।
कमला शर्मा
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