ये स्वच्छंद सी लड़कियां
स्वच्छंद चंचल सी लडकियां
दहलीज के उस पार...
न जाने कब ...
सयानी बन जाती हैं
जो आंखों में संजोती थीं
हर रोज अपने नये सपने
अब वो अपनों की आंखो में
सपना देख, उसे बुनती दिखतीं हैं
जिसकी आंखों में तितलियों सी
चंचलता थी....
न जाने कब वो लड़की
शर्म हया का पर्दा ओढ़
आंखों की चंचलता
छुपाना सीख जाती
जो दिनभर चहकती थी
बाबुल के आंगन में...
दहलीज के उस पार
ये स्वच्छंद चंचल सी लड़कियां
न जाने कब...
दबे सहमे कदमों से
चलना सीख जातीं
अब खुद का अस्तित्व भी
घर की दहलीज के
उस पार ढूंढ़ती....
घर की ख्वाहिशों में अपनी
खुशियों को समेट लेती
स्वच्छंद चंचल सी लड़कियां
दहलीज के उस पार
न जाने कब...
सयानी बन जातीं...।
कमला शर्मा