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Saturday, 29 July 2017



ये स्वच्छंद सी लड़कियां

स्वच्छंद चंचल सी लडकियां
दहलीज के उस पार...
न जाने कब ...
सयानी बन जाती हैं
जो आंखों में संजोती थीं
हर रोज अपने नये सपने
अब वो अपनों की आंखो में
सपना देख, उसे बुनती दिखतीं हैं
जिसकी आंखों में तितलियों सी
चंचलता थी....
न जाने कब वो लड़की 
शर्म हया का पर्दा ओढ़
आंखों की चंचलता
छुपाना सीख जाती
जो दिनभर चहकती थी 
बाबुल के आंगन में...
दहलीज के उस पार
ये स्वच्छंद चंचल सी लड़कियां 
न जाने कब... 
दबे सहमे कदमों से
चलना सीख जातीं
अब खुद का अस्तित्व भी 
घर की दहलीज के
उस पार ढूंढ़ती....
घर की ख्वाहिशों में अपनी
खुशियों को समेट लेती
स्वच्छंद चंचल सी लड़कियां
दहलीज के उस पार
न जाने कब...
सयानी बन जातीं...।

कमला शर्मा

Tuesday, 18 July 2017

भाषा नयनों की...


आंखों की गहराई में है
सागर सी अनंतता
कई अनकहे-अनसुलझे से
सवाल-जवाब हैं
इन पलकों की ओट में।
कभी ये सागर की मौजों सी
चंचलता बयां करतीं
कभी सागर के शांत जल सी
आंखों में ठहर जाती।
कभी मन के खारेपन को
अश्क के जल में बहा देतीं
इन आंखों की गुफ्तगू में
है मन के कई राज छिपे
नजरें झुकाकर हामी भरती
तो नजरें मिलाकर भरोसा करती
और कभी नजरें चुराकर
अनकहे सवालों में उलझा देती।


कमला शर्मा 

ये सलीका...


जिंदगी की चादर में
जब भी सलवटें आतीं
उन्हें सलीके से समेट कर
तह की परत चढ़ाती
और तर्जुबे के तौर पर
स्मृति की अलमारी में
सहेज लेती ये सलीका।
इस चादर की हर परत में
मैंने सीखा जीने का सलीका
जो जिंदगी की सलवटों में
तर्जुबे की मखमली
चादर बनकर...
नर्म से अहसास से
मुझे सहलाती
और ये लकीरें सिमटकर
तब्दील हो जातीं ...
खुशियों की मखमली
ओढ़नी में.....।

कमला शर्मा 

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