प्रेम में जैसे कोई
शीतलता की तासीर है
सूरज का दहकता रूप भी
जैसे ढलने लगता.....।
सांझ के करीब आते-आते
तपिश कहीं छोड़ आता
दूरदराज देश में
अहं त्यागकर हौले-हौले
खो जाता है सांझ की
शीतल सुरमई आगोश में।
गुनगुनाना चाहता है कोई
मधुर सुरीला संगीत
समुद्र की शांत लहरों में।
सांझ संग बतियाते हुए
बुन लेना चाहता है
जैसे कोई इंद्रधनुषी सपना।
इस मिलन में बिखर जाती
हया की सुर्ख लालिमा
इस सुरमई शाम में।
प्रकृति भी लजा जाती
और ओढ़ लेती सांझ की
मखमली नर्म चादर
और खो जाती इंद्रधनुषी
सपनों की दुनिया में.....।
कमला शर्मा
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